Azadi Ka Amrit Mahotsav: स्वतंत्रता सेनानी मुकुटधारी सिंह ने गांधी जी से सीखा मजदूरों के लिए संघर्ष करना
इस देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए हर वर्ग और समुदाय के लोगों ने कुर्बानी दी।
पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी बड़ी तादाद में ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी।
लेकिन उनमें कई ऐसे गुमनाम आजादी दिलाने वाले सिपाही हैं जिनकी शायद ही कोई चर्चा होती है
मुकुटधारी सिंह का जन्म 1905 में भोजपुर (बिहार) के भदवर में हुआ था
इनके पिता नंद केश्वर सिंह थे, मुकुटधारी सिंह ने बचपन में ही अपने पिता को खो दिया था
कुल्हड़िया मिडिल स्कूल से पढ़ाई करने के बाद 1930 में पटना कॉलेज से इतिहास में ऑनर्स किया
प्रदीप कुमार, मुकुटधारी सिंह के (नाती) ने बताया की मुकुटधारी सिंह मजदूरों के नेता थे
आज भी उनसे जुड़ी कई पुस्तकें तथा आजादी के बाद और पूर्व में लिखी गयी कई चिट्ठियां या संदेश प्रदीप कुमार ने संभाल कर रखा हैं
आजादी के पूर्व और बाद में भी मुकुटधारी सिंह वर्षों जेल में रहे
और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मजदूरों के हितों की लड़ाई लड़ते रहे
1938 में जब वह गांधी जी से अहमदाबाद में मिले थे, तो गांधी जी ने कहा था : मजदूरों को जीने लायक मजदूरी मिलनी चाहिए।
ना कि न्यूनतम वेतन, और यदि कोई औद्योगिक संस्थान किसी खास कारण से, घाटे पर भी चलता हो, तो भी जीने लायक मजदूरी देनी ही चाहिए
भले ही उसका भुगतान करने के लिए उक्त औद्योगिक संस्थान के संचित कोष से ही रुपये क्यों न निकालना पड़े।
मुकुटधारी सिंह गांधीजी के इस सिद्धांत पर पूरा जीवन लड़ाई लड़ते रहे।
स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनको ताम्र पत्र देकर भी सम्मानित किया