हरिवंश राय बच्चन की सबसे बेहतरीन कविताएं | Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

हरिवंशराय बच्चन एक प्रसिद्ध भारतीय कवि और लेखक थे, जिन्हें व्यापक रूप से हिंदी साहित्य में सबसे प्रमुख माना जाता है। अपने पूरे जीवन में हरिवंशराय बच्चन ने कई कविताएँ, निबंध और किताबें लिखीं, जो आज भी पाठकों की पीढ़ियों को प्रेरित और प्रभावित करती हैं। इस पोस्ट में हम हरिवंश राय बच्चन की बेहतरीन कविताओं को पढ़ेंगे और जानेंगे।

Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

1. मधुशाला : (Full Poem)

मदिरालय जवाँ है, न जिनकी राहें खोटी;
वे पथिक हो गये, जिनका मुख मधु से लाकर लूटी।

यह मदिरालय है, यह ब्रिंदावन नहीं है
यह मदिरालय है, यह वृन्दावन नहीं है।

पिता कहते हैं – बेटा, यदि कुछ काम नहीं करोगे तो,
तुम्हारी सिर पर कौड़ियों का गुच्छा बैठ जाएगा।

इसलिए, तुम महालियों का कवाड़ उठा लो,
मादक पिने वालों की, पथिक-गण, एक चमक दिखा लो।

तुमको हो के रहना पड़ेगा कवाड़ पर कवाड़,
काम करोगे हर काम, दुर्बल होगी तुम्हारी आवाज़।

दो बातें, मुझको अपने मन से कहनी हैं,
दो बातें, तुम मुझसे कह के पहले जानी हैं।

ये तम्बू है, वीरों के;
सिपाहियों की श्रृंगार-वाणियाँ हैं, जीवन की संघर्ष-यात्राओं के।

ज्ञान के सिंदु हैं, ये सुरभि सुन्दर तल;
कट जाएगा नहीं, यह वर्षा सर्वोत्तम फल।

मनोबल से भागो, जब भी युद्ध का स्वर जिनके हिरण्यमय घड़े से उठेगा,
सिंदु-तरंग संगीत सुनकर जो पीना चाहते हैं,

किंतु शत्रुओं के बीच जो मधु बाँटकर गये हैं,
वे अभी कहाँ से हमें निकालकर पीलाएंगे?

वे सिपाही हैं, ताने बाजों से जूझनेवाले,
वे वीरयोद्धाएँ, जो संग्राम के आदिम अखाड़ों में संघर्ष करते हैं।

वे संकेतों से सञ्चित ताने दरारें निकालकर,
सफलता के नेतृत्व का मान प्राप्त करते हैं।

यदि काले घोड़े से निकलकर दगड़े की ओर बढ़ना हो,
तो प्रायः उसे अकेले ही दरारें निकालनी होती हैं।

मनशरीर आत्मबल की धारा से होकर जाती है आदमी की सफलता;
पथिक, तब तुम्हारी आवाज़ होती है मदिरालय की प्रतिष्ठा।

यदि किसी भी पथिक के शौक की पूर्ति होनी हो,
तो वह मदिरालय में एक शिस्त-अदब के साथ बैठे होते हैं।

यहाँ पर कोई नीतिपठक नहीं, न कोई शास्त्रकार;
यह लोग बहस-विवाद करने के लिए आते हैं, खूब पीते हैं और गाते हैं।

मदिरालय के महाशय, आपसे कहना तो यह है,
कि किसी भी जीवन यात्रा के लिए अपने अकेले तन को धन्यवाद दें।

जो एक मात्र नयक हैं, ये लोग जीवन की यात्रा में;
किसी संघर्ष यात्रा की सफलता पर आत्म-समर्पण करते हैं।

मदिरालय के मालक, कभी तो पीकर तो देखो,
जो कुछ दिखाई देता है, वही सच नहीं होता।

विश्वास न करो उसकी बातों पर, जो मधु पीकर जाते हैं;
मदिरालय के मालक, वही सच होता है, जो दिखाई देता है।

इस सबके बावजूद भी विश्वास करो उसमें, जो आँधियों से बचकर आया है;
वही जीवन में कुछ बन जाता है, जो मधु की भरपूर भींभीं छाया में है।

मदिरालय के मालक, आपसे कहना तो यह है,
कि किसी भी जीवन यात्रा के लिए अपने अकेले तन को धन्यवाद दें।

आपकी मदिरालय की छायाएँ रुपियों के साथ बिकती हैं,
और जीवन की यात्रा का आत्म-समर्पण किया जाता है।

मदिरालय के मालक, किसी के भी द्वार जाकर देखो,
जो कुछ दिखाई देता है, वही सच नहीं होता।

विश्वास न करो उसकी बातों पर, जो मधु पीकर जाते हैं;
मदिरालय के मालक, वही सच होता है, जो दिखाई देता है।

इस सबके बावजूद भी विश्वास करो उसमें, जो आँधियों से बचकर आया है;
वही जीवन में कुछ बन जाता है, जो मधु की भरपूर भींभीं छाया में है।

मदिरालय के मालक, यदि तुमने आँखें खोली होती,
तो तुम्हारी आवाज़ को जगह जगह आसमां चुम लेती है।

जो कुछ दिखता है, वही है सच,
और जो कुछ सुनता है, वही है सच।

जो कुछ दिखता है, वही है सच,
और जो कुछ सुनता है, वही है सच।

जिनके बस में अन्धा-धुंध धूप के बावजूद भी हैं,
वे होते हैं असली दरबारी तेरे मधु मनमोहक महल के।

तेरी उपासना की महक और मधु बिस्मयकारी है,
और तेरा ध्यान उनके मन से दूर भी नहीं जाता है।

वे नरम दीप्तियों की तरह तेरे मन की अंधकार में बिकते हैं,
तेरे व्यापक आकाश के ऊपर छाए हुए तारों के समान।

तेरे सभी पीने वालों को वो अपना मान लेते हैं,
और तेरी सभी चुपचाप पूजाओं को वो सुनते हैं।

क्योंकि जिनके पास धैर्य और सब्र की भूमिका होती है,
वे विश्वास की नींव पर अपना आकार बना देते हैं।

तेरे मधुमय आकाश के तले बसे हैं वे,
और वे हमेशा तेरे साथ हैं, चाहे जैसी भी दिशा में हो।

तेरे मधुमय आकाश के तले बसे हैं वे,
और वे हमेशा तेरे साथ हैं, चाहे जैसी भी दिशा में हो।

तेरे मधुमय आकाश के तले बसे हैं वे,
और वे हमेशा तेरे साथ हैं, चाहे जैसी भी दिशा में हो।

इस सबके बावजूद भी विश्वास करो उसमें, जो आँधियों से बचकर आया है;
वही जीवन में कुछ बन जाता है, जो मधु की भरपूर भींभीं छाया में है।

मदिरालय के मालक, आपसे कहना तो यह है,
कि किसी भी जीवन यात्रा के लिए अपने अकेले तन को धन्यवाद दें।

आपकी मदिरालय की छायाएँ रुपियों के साथ बिकती हैं,
और जीवन की यात्रा का आत्म-समर्पण किया जाता है।

मदिरालय के मालक, किसी के भी द्वार जाकर देखो,
जो कुछ दिखाई देता है, वही सच नहीं होता।

विश्वास न करो उसकी बातों पर, जो मधु पीकर जाते हैं;
मदिरालय के मालक, वही सच होता है, जो दिखाई देता है।

इस सबके बावजूद भी विश्वास करो उसमें, जो आँधियों से बचकर आया है;
वही जीवन में कुछ बन जाता है, जो मधु की भरपूर भींभीं छाया में है।

मदिरालय के मालक, यदि तुमने आँखें खोली होती,
तो तुम्हारी आवाज़ को जगह जगह आसमां चुम लेती है।

जो कुछ दिखता है, वही है सच,
और जो कुछ सुनता है, वही है सच।

जो कुछ दिखता है, वही है सच,
और जो कुछ सुनता है, वही है सच।

जिनके बस में अन्धा-धुंध धूप के बावजूद भी हैं,
वे होते हैं असली दरबारी तेरे मधु मनमोहक महल के।

तेरी उपासना की महक और मधु बिस्मयकारी है,
और तेरा ध्यान उनके मन से दूर भी नहीं जाता है।

वे नरम दीप्तियों की तरह तेरे मन की अंधकार में बिकते हैं,
तेरे व्यापक आकाश के ऊपर छाए हुए तारों के समान।

तेरे सभी पीने वालों को वो अपना मान लेते हैं,
और तेरी सभी चुपचाप पूजाओं को वो सुनते हैं।

वे जो बीच-बीच में छुपे रहते हैं,
तेरी उपासना में वो ही शक्ति के अभिभावक होते हैं।

तेरी भक्ति में जो मधु छुपा होता है,
वो शक्ति की मांग को पूरा करता है।

मदिरालय के मालक, आपसे कहना तो यह है,
कि किसी भी जीवन यात्रा के लिए अपने अकेले तन को धन्यवाद दें।

आपकी मदिरालय की छायाएँ रुपियों के साथ बिकती हैं,
और जीवन की यात्रा का आत्म-समर्पण किया जाता है।

विद्यार्थियों के जिनके हाथों में कुछ भी नहीं होता,
वे होते हैं आपके मधुमय आकाश के सबसे बड़े दिग्गज।

तुम्हारी शिक्षा और विद्या के बिना ही वे आपके पास आते हैं,
और वे आपके सभी सिखाएं मानते हैं और पालन करते हैं।

वे जो बीच-बीच में छुपे रहते हैं,
तेरी उपासना में वो ही शक्ति के अभिभावक होते हैं।

तेरी भक्ति में जो मधु छुपा होता है,
वो शक्ति की मांग को पूरा करता है।

मदिरालय के मालक, आपसे कहना तो यह है,
कि किसी भी जीवन यात्रा के लिए अपने अकेले तन को धन्यवाद दें।

आपकी मदिरालय की छायाएँ रुपियों के साथ बिकती हैं,
और जीवन की यात्रा का आत्म-समर्पण किया जाता है।

मदिरालय के मालक, किसी के भी द्वार जाकर देखो,
जो कुछ दिखाई देता है, वही सच नहीं होता।

विश्वास न करो उसकी बातों पर, जो मधु पीकर जाते हैं;
मदिरालय के मालक, वही सच होता है, जो दिखाई देता है।

इस सबके बावजूद भी विश्वास करो उसमें, जो आँधियों से बचकर आया है;
वही जीवन में कुछ बन जाता है, जो मधु की भरपूर भींभीं छाया में है।

मदिरालय के मालक, यदि तुमने आँखें खोली होती,
तो तुम्हारी आवाज़ को जगह जगह आसमां चुम लेती है।

जो कुछ दिखता है, वही है सच,
और जो कुछ सुनता है, वही है सच।

जो कुछ दिखता है, वही है सच,
और जो कुछ सुनता है, वही है सच।

ये सभी किसी भी समय तुम्हारे पास होते हैं,
और तुम्हारे मधुमय आकाश के तले बसे होते हैं।

तुम्हारे मधुमय आकाश के तले बसे हैं वे,
और वे हमेशा तुम्हारे साथ हैं, चाहे जैसी भी दिशा में हो।

तुम्हारे मधुमय आकाश के तले बसे हैं वे,
और वे हमेशा तुम्हारे साथ हैं, चाहे जैसी भी दिशा में हो।

तुम्हारे मधुमय आकाश के तले बसे हैं वे,
और वे हमेशा तुम्हारे साथ हैं, चाहे जैसी भी दिशा में हो।

इस सबके बावजूद भी विश्वास करो उसमें, जो आँधियों से बचकर आया है;
वही जीवन में कुछ बन जाता है, जो मधु की भरपूर भींभीं छाया में है।

मदिरालय के मालक, आपसे कहना तो यह है,
कि किसी भी जीवन यात्रा के लिए अपने अकेले तन को धन्यवाद दें।

आपकी मदिरालय की छायाएँ रुपियों के साथ बिकती हैं,
और जीवन की यात्रा का आत्म-समर्पण किया जाता है।

मदिरालय के मालक, किसी के भी द्वार जाकर देखो,
जो कुछ दिखाई देता है, वही सच नहीं होता।

विश्वास न करो उसकी बातों पर, जो मधु पीकर जाते हैं;
मदिरालय के मालक, वही सच होता है, जो दिखाई देता है।

इस सबके बावजूद भी विश्वास करो उसमें, जो आँधियों से बचकर आया है;
वही जीवन में कुछ बन जाता है, जो मधु की भरपूर भींभीं छाया में है।

मदिरालय के मालक, यदि तुमने आँखें खोली होती,
तो तुम्हारी आवाज़ को जगह जगह आसमां चुम लेती है।

जो कुछ दिखता है, वही है सच,
और जो कुछ सुनता है, वही है सच।

जो कुछ दिखता है, वही है सच,
और जो कुछ सुनता है, वही है सच।

ये सभी किसी भी समय तुम्हारे पास होते हैं,
और तुम्हारे मधुमय आकाश के तले बसे होते हैं।

तुम्हारे मधुमय आकाश के तले बसे हैं वे,
और वे हमेशा तुम्हारे साथ हैं, चाहे जैसी भी दिशा में हो।

तुम्हारे मधुमय आकाश के तले बसे हैं वे,
और वे हमेशा तुम्हारे साथ हैं, चाहे जैसी भी दिशा में हो।

तुम्हारे मधुमय आकाश के तले बसे हैं वे,
और वे हमेशा तुम्हारे साथ हैं, चाहे जैसी भी दिशा में हो।
-हरिवंश राय बच्चन

2. कोशिश करने वालों की हार नहीं होती :

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
 कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।

मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
 चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना उसे ना अखरता है।

आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
 कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती|

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
 जा जाकर खाली हाथ लौट कर आता है।

मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।

मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
 कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
 क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।

जब तक न सफल हो जाओ, नींद चैन को त्यागो तुम,
यूं संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।

कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की,
कभी हार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
-हरिवंश राय बच्चन

3. मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षणभर जीवन :

मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षणभर जीवन।
मृत्यु ही सच्ची, यह यही है परम परिणाम।

दीप बुझ जाने पर, भग्न सिर मुस्कान जिया,
पुनः उजियारा मैंने अपने ही हाथ बनाया।

स्वागत का अद्वितीय रस्ता है मरण।
वही सत्य है, वही साक्षर, वही प्रेम।

सबकुछ स्वीकार है, खो देने का सहारा है।
मरण ही सच्ची, यह यही है परम प्रेम।
-हरिवंश राय बच्चन

4. अँधेरे का दीपक :

है अँधेरी रात, पर दीवा जलाना कब मना है?
कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था,
भावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था,
स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा,

स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था,
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर,
कंकड़ों को एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है?
है अँधेरी रात, पर दीवा जलाना कब मना है?

बादलों के अश्रु से धोया गया नभ-नील नीलम का बनाया गया
मधुपात्र मनमोहक, मनोरम प्रथम ऊषा की किरण की लालिमा सी
लाल मदिरा थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम,

वह अगर टूटा मिलाकर हाथ की दोनों हथेली,
एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?

क्या घड़ी थी, एक भी चिंता नहीं थी पास आई,
कालिमा तो दूर, छाया भी पलक पर थी न छाई,
आँख से मस्ती झपकती, बात से मस्ती टपकती,

थी हँसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खाई,
वह गई तो ले गई उल्लास के आधार, माना,
पर अथिरता पर समय की मुस्कुराना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?

हाय, वे उन्माद के झोंके कि जिनमें राग जागा,
वैभवों से फेर आँखें गान का वरदान माँगा,
एक अंतर से ध्वनित हो दूसरे में जो निरंतर,
भर दिया अंबर-अवनि को मत्तता के गीत गा-गा,

अंत उनका हो गया तो मन बहलने के लिए ही,
ले अधूरी पंक्ति कोई गुनगुनाना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?

हाय, वे साथी कि चुंबक लौह-से जो पास आए,
पास क्या आए, हृदय के बीच ही गोया समाए,
दिन कटे ऐसे कि कोई तार वीणा के मिलाकर

एक मीठा और प्यारा ज़िन्दगी का गीत गाए,
वे गए तो सोचकर यह लौटने वाले नहीं वे,
खोज मन का मीत कोई लौ लगाना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?

क्या हवाएँ थीं कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना,
कुछ न आया काम तेरा शोर करना, गुल मचाना,
नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका,
किंतु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना,

जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से,
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है?
है अँधेरी रात, पर दीवा जलाना कब मना है?

5. आत्मपरिचय :

जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ!

मैं स्‍नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्‍यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा है उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ!

मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ;
है यह अपूर्ण संसार ने मुझको भाता
मैं स्‍वप्‍नों का संसार लिए फिरता हूँ!

मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्‍न रहा करता हूँ;
जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्‍त बहा करता हूँ!

मैं यौवन का उन्‍माद लिए फिरता हूँ,
उन्‍मादों में अवसाद लए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ!

कर यत्‍न मिटे सब, सत्‍य किसी ने जाना?
नादन वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!
फिर मूढ़ न क्‍या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भूलना!

मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज़ मिटाता;
जग जिस पृथ्‍वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्‍वी को ठुकराता!

मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिसपर भूपों के प्रसाद निछावर,
मैं उस खंडर का भाग लिए फिरता हूँ!

मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्‍यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!

मैं दीवानों का एक वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्‍ती का संदेश लिए फिरता हूँ।

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