सोने का पहाड़ | Hindi Story

इस Hindi Story को पढ़कर आप समझ जायेंगे की कैसे जो माता – पिता अपने जिस बच्चे को सबसे ज्यादा प्यार करते हैं और सोचते हैं की मेरा ये बेटा बुढ़ापे में मेरा साथ देगा वो बेटा बड़े होने के बाद उनकी तरफ देखता भी नहीं है और जिस बेटे को समझते हैं ये कुछ नहीं कर सकता वो ही बड़ा होकर उनका ख़याल रखता है! चलिए इस कहनी से आगे की बात जानते हैं;

मानिक के दो बेटे थे चंदन और कुंदन, चंदन अपने पिता मानिक की हर बात माना करता था चंदन पढ़ाई के साथ-साथ जॉब भी किया करता था और वही कुंदन बस मटरगश्ती करने में ही डूबा रहता था ।

एक दिन मानिक कुंदन से कहता है “अरे नालायक कुछ सीख अपने भाई से एक वो है जो घर का सारा खर्चा संभालता है और एक तू है जो मुफ्त की रोटियां तोड़ता हैै” मानिक कुंदन को हमेशा खरी-खोटी सुनाया करता था।

लेकिन कुंदन ने कभी उल्टा जवाब नहीं दिया समय बीतता गया चंदन को और भी अच्छी जॉब लग गई और कुंदन एक छोटी सी दुकान में काम करने लगा मानिक को लगता था चंदन उसके बुढ़ापे का सहारा बनेगा इसीलिए वह चंदन को कुंदन से ऊपर समझता था।

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कुछ वर्षों बाद जब चंदन की शादी हो गई शुरू-शुरू में सब ठीक था लेकिन बाद में कुंदन का उसकी भाभी के साथ अक्सर झगड़ा हुआ करता था कुंदन की भाभी कहती है अरे देवर जी आप कुछ काम नहीं कर रहे हो तो जाकर बाजार से सब्जियां ही ले आइए कुंदन कहता है माना मैं कुछ काम नहीं कर रहा हूं पर फिलहाल आप भी तो कुछ नहीं कर रही हो आप ही बाजार से सब्जियां क्यों नहीं ले आती ।

चंदन की पत्नी चंदन से कुंदन की शिकायत करने लगती है और हर बात को बढ़ा चढ़ाकर बताती है और इसी कारण चंदन और कुंदन के बीच मनमुटाव बढ़ गया वह दोनों अक्सर झगड़ते रहते, मानिक यह सब देख कर परेशान था और उसने निर्णय ले लिया की बटवारा ही इन सब का उपाय है।

उसने अपने दोनों बेटों को बुलाया और दोनों से कहा कि मैं चाहता हूं तुम दोनों खुश रहो चाहे फिर उसके लिए तुम दोनों को अलग ही क्यों ना रहना पड़े, चंदन कहता है मैं बटवारा करना चाहता हूं तभी कुंदन कहता है मुझे कुछ नहीं चाहिए आपने जितना कमाया है वह सब भैया को दे दीजिए।

इस पर मानिक कहता है ऐसा कैसे हो सकता है मेरी जायदाद में सिर्फ दो ही चीजें हैं पहला ये घर और दूसरा शहर से दूर खरीदी हुई मेरी जमीन और ये घर में चंदन को देना चाहता हूं क्योंकि इसकी शादी हो गई है और इसका एक परिवार है और कुंदन से कहता है मेरी शहर से बाहर वाली जमीन तुम रख लो।

चंदन कहता है ठीक है, पापा और कुंदन भी हामी में सर हिला देते हैं उसी दिन कुंदन अपना सारा सामान लेकर शहर से बाहर वाली जमीन पर चला गया वहां एक छोटी सी झोपड़ी के अलावा और कुछ नहीं था पर उस झोपड़ी को भी देख कर कुंदन खुश था, कुंदन कहता है “चलो सर पर छत तो है और मेरी वजह से किसी को कोई परेशानी भी नहीं होगी और क्या चाहिए मुझे”

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अगले कई महीनों तक कुंदन इस पहाड़ी इलाके पर लकड़ियों का घर बांधने लगा वह सारी मेहनत अकेले ही कर रहा था और खुश था वहां चंदन की पत्नी को अपने ससुर से भी अर्चन होने लगी चंदन की पत्नी चंदन से कहती है “तुम बहुत भोले हो और तुम्हारे पिताजी तुम्हारे इसी भोलेपन का फायदा उठाते हैं” चंदन कहता है मैं कुछ समझा नहीं ।

तभी उसकी पत्नी कहती है तुम्हें याद है ना तुमने पिताजी को कल बिजली का बिल भरने के लिए रुपए दिए थे चंदन कहता है हां वही न जो उनसे कहीं गिर गए थे तो चंदन की पत्नी कहती है मुझे नहीं लगता कि वह रुपए उनसे कहीं गिर गए हैं कल उन्होंने अपने लिए नए जूते खरीदे उसके पैसे उनके पास कहां से आए।

तब चंदन कहता है इसका मतलब उन्होंने मुझसे झूठ बोला और बस तभी से चंदन अपने पिताजी से लड़ने लगा वह हर बात पर उन्हें बात-बात पर ताने मारता और चंदन की पत्नी कल्पना भी उनसे अच्छे से व्यवहार नहीं करती थी वह उन्हें पेट भर खाना तक नहीं देती थी कल्पना अपने ससुर से कहती है यह लीजिए 100 रुपए और 2 किलो आलू और 2 किलो टमाटर ले आइए और कहती है बाकी के रुपए वापस लौटा देना ध्यान से।

मानिक दुखी होकर बोलता है ठीक है बहू, बेचारा मानिक करता भी तो क्या जब उसका अपना बेटा ही उससे अच्छे से बर्ताव नहीं कर रहा था तो बहु से क्या उम्मीद रखता मानिक की सारी आकांक्षाएं टूट चुकी थी मानिक को लगता था कि चंदन उसके बुढ़ापे का सहारा बनेगा लेकिन चंदन तो उससे सीधे मुंह बात तक नहीं कर रहा था और वहां धीरे धीरे कुंदन का घर बनने लगा था।

कुंदन बहुत खुश था कि जल्द ही उसका अपना घर बन जाएगा कुंदन खुशी-खुशी सोचता है कि घर बनते ही सबसे पहले पिताजी को दिखाऊंगा और उन्हें जरूर मुझ पर नाज होगा और वहीं दूसरी तरफ चंदन और कल्पना दिन पर दिन मानिक के साथ बुरा बर्ताव कर रहे थे मानिक अकेले में रोया करता था और वह करें भी तो क्या?

जैसे ही कुंदन का घर बन गया कुंदन सीधा शहर लौटा और यहां उसने देखा कि उसकी भाभी उसके पिताजी पर चिल्ला रही थी यह उससे देखा नहीं गया कुंदन अपनी भाभी से कहता है अगर पिताजी की जगह आपके खुद के पिताजी होते तो क्या तब भी आप उन से ऐसे ही बात करती इस पर उसकी भाभी कहती है आओ बस एक तुम्हारी ही कमी थी जब इतना ही मोह है अपने पिता का तो उन्हें भी अपने साथ क्यों नहीं ले जाते हो।

कुंदन कहता है हां यही करूंगा और आज के बाद तुम लोग पिताजी का मुंह भी नहीं देख पाओगे तभी वहां चंदन भी आ जाता है और कहता है इतना घमंड तो ले जा मैं भी देखता हूं तू पिताजी को मुझसे अच्छा कैसे संभालता है कुंदन अपने पिताजी का हाथ पकड़कर वहां से चला गया उन दोनों ने बस पकड़ी और शहर के बाहर चले गए ।

मानिक को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था वह कुंदन से कहता है यहां तो बस एक छोटी सी झोपड़ी थी तब कुंदन कहता है हां पिता जी यह घर मैंने बनाया है यही बताने तो मैं आपके पास आया था सोचा था आपको दिखाऊंगा तो आप बहुत खुश होंगे मानिक की आंखों से आंसू आ गए, जिस बेटे को उसने खोटा सिक्का समझा था वह तो असल में खरा सोना निकला।

कुंदन अपने पिता को लेकर घर के अंदर गया और पिता जी से कहा “आज से यह घर आपका है बस यहां पानी की तकलीफ है पर मैं कुंवा खोद रहा हूं जल्द ही पानी की समस्या भी दूर हो जाएगी”। मानिक कहता है मुझे यकीन है तू ये काम भी कर ही लेगा उस दिन कुंदन ने अपने पिता की बहुत अच्छे से सेवा करी और साथ में बहुत समय बिताया।

रात को जब मानिक सो गया तो कुंदन भी अपने पिता के पैरों के पास सो गया और जब रात को मानिक की नींद खुली तो वह यह मंजर देख कर अपने आंसुओं को नहीं रोक पाया और सोचने लगता है जिस बेटे को मैंने हमेशा दुतकार वह मुझे इतना प्रेम करता है। हे भगवान इसका जीवन खुशियों से भर देना।

मानिक कुंदन को देखते देखते सो गया, और अगली सुबह जब कुंदन कुदाल लेकर घर से बाहर निकला तो मानिक ने पूछा इतनी सुबह कहां चल दिए तो कुंदन बोला कुआं खोदने कुंदन अपने घर से कुछ ही दूरी पर कुंवा खोद रहा था तभी उसे जमीन में कुछ चमकीला दिखाई पड़ता है जब वह मिट्टी को हटाकर देखता है तो वह सोना होता है वह सोना लेकर घर आता है और पिताजी को दिखाता है और कहता है यह सिर्फ इतना ही सोना नहीं है बल्कि पूरा पहाड़ ही सोने का है।

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तभी उसके पिता उससे कहते हैं यह पहाड़ सोने का नहीं, तुम्हारा मन सोने का है मैंने तुम्हें हमेशा दुत्कारा पर तुम फिर भी मुझे इतना प्रेम करते हो तुम्हारा मन बहुत अच्छा है इसीलिए तो सोने का पहाड़ तुम्हारे हिस्से में आया ।

सोने का पहाड़ पाकर कुंदन ने अपने पिता को सारे सुख दिए और अपनी पिता की सेवा करने में लगा रहा। और वहीं दूसरी तरफ चंदन और उसकी पत्नी को जलन होने लगी कल्पना चंदन से कहती है वह दोनों कितने आराम से रह रहे होंगे और हमारे हिस्से में केवल यह घर तभी चंदन कहता है शायद से पिताजी को पहले से पता था कि वह पहाड़ सोने का है।

उसकी पत्नी कहती है क्या अब वो हमें कुछ देंगे तभी चंदन कहता है वह हमें कुछ क्यों देंगे क्या कभी तुमने कुंदन से सीधे मुंह बात करी थी तो कल्पना कहती है अच्छा तो तुमने मेरे कहने पर अपने भाई और अपने पिताजी से लड़ाई क्यों करी वह दोनों लड़ते रहे और वहां कुंदन और उसके पिता सुख से रह रहे थे।

सीख :

इस Hindi Story से हमें यह सीख मिलती है कि कर भला तो हो भला। अगर आप किसी का भला करते हैं तो आपको निश्चित ही उसका फल मिलेगा इसके लिए आपको सोचने की आवश्यकता नहीं है!

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